Wednesday 31 October 2012

तर्क शक्ति परीक्षण व सामान्य बुद्धि परीक्षा


तर्क शक्ति परीक्षण व सामान्य बुद्धि परीक्षा


तर्क शक्ति परीक्षण व सामान्य बुद्धि परीक्षा

वर्तमान में प्रतियोगी परिक्षाओ में तर्क शक्ति परीक्षण की विशेष महत्ता है . सभी प्रकार के वर्गों की परीक्षाओं में तर्क शक्ति के प्रश्न पूछे जाते है . इसलिए आपके लिए इस वेबपत्र पर उन्ही को समझाया जायेगा . यदि आपको अच्छा लगे तो जरूर बताना . मेरी शुभकामनाएँ आपके उज्ज्वल भविष्य के लिए तो चलो अब हम अपना काम शुरू करते है तथा समझते है



1. श्रेणी क्रम (series test)
इस परीक्षा में के लिए तीन या चार अंको की या इनसे अधिक की एक श्रेणी दी जाती है इन अंको में एक आपसी सम्बन्ध होता है या इनकी एक क्रम में श्रेणी बनती है . उसी के द्वारा ऐसे प्रश्नों को हल किया जाता है
1. गणितीय सूत्रों को याद रखे (वर्ग, घन, सम, विषम, भाज्य)
2. अधिक से अधिक अभ्यास करे
3. प्रश्न की भाषा को समझे



• योग का नियम :
5, 9, 14, 20, 27, ?
(a) 32 (b) 34 (c)35 (d) 37
अब देखते है की यह श्रेणी किस प्रकार से आगे बढ़ रही है=5 9 14 20 27 35
अब आप देख प चुके होंगे की किस क्रम में यह श्रेणी बढ़ रही है इसमें 4,5,6,7,8 के क्रम में बढ़ रही है माना की एक एक बढकर आपस में जुड रहें है इस प्रकार यह था योग का नियम
1. +4, +4, +4 (संख्या का अंतर)
2. +2, +4, +6 (सम संख्या का अंतर)
3. +1, +4, +9 (प्राकृत संख्या का अंतर)
4. +3, +5, +7 (विषम संख्या का अंतर)


• घटाने का नियम
16, 14, 11, 7, ?
इस घटाने के नियम को देखते है आप इसमे ध्यान से देखीय क्या हो रहा है आप देखते है की इसमें -2, -3, -4, -5 से घट रहा है इसका मतलब इसमें अगला वाला अंक 2 आएगा.


• गुना करने के नियम
देखते है यह उदाहरण 2, 6, 18, 54, ?
इस श्रेणी में यह संख्याए *3, *3, *3, *3, *3 से बढ़ रही है इसका मतलब इसमें अगले वाला अंक 162 आएगा


• भाग का नियम:

240, 120, 60, 30, ? इसमें अगला अंक क्या होगा
इसमें देखने पर पाया गया की इसमें 240 में 2 का भाग देने पर 120 आये इस प्रकार आगे यह क्रम चालू रहा 120 में 2 का भाग लगने पर 60 आये ...... इस प्रकार से अगला शब्द 15 आएगा


• संयुक्त श्रृंखला का नियम
इसमें दो क्रम में श्रेणी बढती है देखना चाहिए एक यह उदाहरण
4, 28, 6, 26, 8, 24, 10, 22, ?
अरे इसमें ये क्या आ गया छात्राओं इसमें दो क्रम चल रहा है जिसमें एक 4, 6, 8, 10 का बन रहा है वही दूसरी 28, 26, 24, 22 चल रही है पहली श्रेणी में दो जुड रहे है और दूसरी में दो के अंतराल से घट रहा है आ गया समझ में .

• वर्ग और घन का नियम
इसमें वर्ग (किसी संख्या की दो की घात यानि की उस संख्या को दो बारी गुना करना) या घन (किसी संख्या की तीन की घात यानि उसको तीन बारी गुना करना) को जोड़कर हल किया जाता है देखते है एक उदाहरण
2, 9, 28, 65, 126 इसमें अगला क्या है
देखते है की किस क्रम में ये सब कुछ हो रहा है इसमें एक का घन + एक जुड रहा है एक का घन एक और उसमे एक और जोड़ दिया तो दो हो गये , इसी प्रकार से आगे चल रहा है दो घन +एक , दो का घन +एक, तीन का घन +एक इसी प्रकार से यह क्रम बढता है तो अंत में छ: का घन + एक जुडकर 217 हो रहे है (छ: का घन मतलब 6*6*6 = 216) +1 = 217 आया कुछ समझ में


• मिश्रित क्रिया की श्रृंखला का नियम
3, 8, 23, 68, 203, ?
इसमें प्रत्येक पद *3-1 के क्रम में बढ़ रही है इसका मतलब 608 आएगा इसके अंत में
(203 * 3 -1 = 608)

• अंको में व्यवस्था में परिवर्तन का नियम
1369, 9136, 6913, 3691, ? इसमें प्रत्येक अगला पद पिछले पद के आखिरी अंक से शुरू होता है अत: 3691 = 1369


• पूर्व पदों के योग का नियम
5, 2, 7, 9, 16, 25 इसमें अगला पद क्या होगा
इसमें प्रत्येक तीसरा पद पिछले दो पदों का योग है इसक मतलब इसमें 41 आएगा





ध्यन्यवाद 

भारतीय संविधान

भारतीय संविधान


भारतसंसदीय प्रणाली की सरकार वाला एक प्रभुसत्तासम्पन्न, समाजवादी धर्मनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य है। यह गणराज्य भारत के संविधान के अनुसार शासित है। भारत का संविधान संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर, 1949 को पारित हुआ तथा 26 जनवरी, 1950 से प्रभावी हुआ। 26 जनवरी का दिन भारत में गणतन्त्र दिवस के रूप में मनाया जाता है।


भारतीय संविधान  का संक्षिप्त परिचय

भारत का संविधान दुनिया का सबसे बडा लिखित संविधान है। इसमें ३९५ अनुच्छेद,तथा १२ अनुसूचियां हैं। परन्तु इसके निर्माण के समय इसमें केवल ८ अनुसूचियां थीं। संविधान में सरकार के संसदीय स्‍वरूप की व्‍यवस्‍था की गई है जिसकी संरचना कुछ अपवादों के अतिरिक्त संघीय है। केन्‍द्रीय कार्यपालिका का सांविधानिक प्रमुख राष्‍ट्रपति है। भारत के संविधान की धारा 79 के अनुसार, केन्‍द्रीय संसद की परिषद् में राष्‍ट्रपति तथा दो सदन है जिन्‍हें राज्‍यों की परिषद् राज्‍यसभा तथा लोगों का सदनलोकसभा के नाम से जाना जाता है। संविधान की धारा 74 (1) में यह व्‍यवस्‍था की गई है कि राष्‍ट्रपति की सहायता करने तथा उसे सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद् होगी जिसका प्रमुख प्रधान मंत्री होगा, राष्‍ट्रपति इस मंत्रिपरिषद् की सलाह के अनुसार अपने कार्यों का निष्‍पादन करेगा। इस प्रकार वास्‍तविक कार्यकारी शक्ति मंत्रिपरिषद् में निहित है जिसका प्रमुख प्रधानमंत्री है जो वर्तमान में मनमोहन सिंह हैं।
मंत्रिपरिषद् सामूहिक रूप से लोगों के सदन (लोक सभा) के प्रति उत्तरदायी है। प्रत्‍येक राज्‍य में एक विधान सभा है। जम्मू कश्मीर, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश में एक ऊपरी सदन है जिसे विधान परिषद् कहा जाता है।राज्‍यपाल राज्‍य का प्रमुख है। प्रत्‍येक राज्‍य का एक राज्‍यपाल होगा तथा राज्‍य की कार्यकारी शक्ति उसमें विहित होगी। मंत्रिपरिषद्, जिसका प्रमुख मुख्‍य मंत्री है, राज्‍यपाल को उसके कार्यकारी कार्यों के निष्‍पादन में सलाह देती है। राज्‍य की मंत्रिपरिषद् सामूहिक रूप से राज्‍य की विधान सभा के प्रति उत्तरदायी है।
संविधान की सातवीं अनुसूची में संसद तथा राज्‍य विधायिकाओं के बीच विधायी शक्तियों का वितरण किया गया है। अवशिष्‍ट शक्तियाँ संसद में विहित हैं। केन्‍द्रीय प्रशासित भू- भागों को संघराज्‍य क्षेत्र कहा जाता है।


अनुसूचियाँ

1. पहली अनुसूची - (अनुच्छेद 1 तथा 4) - राज्य तथा संघ राज्य क्षेत्र का वर्णन ।
2. दूसरी अनुसूची - [अनुच्छेद 59(3), 65(3), 75(6),97, 125,148(3), 158(3),164(5),186 तथा 221] - मुख्य पदाधिकारियों के वेतन-भत्ते भाग-क-राष्ट्रपति और राज्यपाल के वेतन-भत्ते, भाग-ख- लोकसभा तथा विधानसभा के अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष, राज्यसभा तथा विधान परिषद् के सभापति तथा उपसभापति के वेतन-भत्ते,भाग-ग- उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन-भत्ते, भाग-घ- भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षकके वेतन-भत्ते।
3. तीसरी अनुसूची - [अनुच्छेद 75(4),99, 124(6),148(2), 164(3),188 और 219] - व्यवस्थापिका के सदस्य, मंत्री, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, न्यायाधीशों आदि के लिए शपथ लिए जानेवाले प्रतिज्ञान के प्रारूप दिए हैं।
4. चौथी अनुसूची - [अनुच्छेद 4(1),80(2)] - राज्यसभा में स्थानों का आबंटन राज्यों तथा संघ राज्य क्षेत्रों से।
5. पाँचवी अनुसूची - [अनुच्छेद 244(1)] - अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जन-जातियों के प्रशासन और नियंत्रण से संबंधित उपबंध।
6. छठी अनुसूची - [अनुच्छेद 244(2), 275(1)] - असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों के जनजाति क्षेत्रों के प्रशासन के विषय मे उपबंध।
7. सातवीं अनुसूची - [अनुच्छेद 246] - विषयों के वितरण से संबंधित सूची-1 संघ सूची, सूची-2 राज्य सूची, सूची-3 समवर्ती सूची।
8. आठवीं अनुसूची - [अनुच्छेद 344(1), 351] - भाषाएँ - 22 भाषाओं का उल्लेख।
9. नवीं अनुसूची - [अनुच्छेद 31 ख ] - कुछ भुमि सुधार संबंधी अधिनियमों का विधिमान्य करण।
10.दसवीं अनुसूची - [अनुच्छेद 102(2), 191(2)] - दल परिवर्तन संबंधी उपबंध तथा परिवर्तन के आधार पर अ
११ ग्यारवी अनुसूची - पन्चायती राज से सम्बन्धित
१२ बारह्ववी अनुसूची - यह अनुसूची संविधान मे ७४ वे संवेधानिक संशोंधन द्वारा जोडि गई।

इतिहास

द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद जुलाई १९४५ में ब्रिटेन ने भारत संबन्धी अपनी नई नीति की घोषणा की तथा भारत की संविधान सभा के निर्माण के लिए एक कैबिनेट मिशन भारत भेजा जिसमें ३ मंत्री थे। १५ अगस्त, १९४७ को भारत के आज़ाद हो जाने के बाद संविधान सभा की घोषणा हुई और इसने अपना कार्य ९ दिसम्बर १९४६ से आरम्भ कर दिया। संविधान सभा के सदस्य भारत के राज्यों की सभाओं के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा चुने गए थे। जवाहरलाल नेहरू, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि इस सभा के प्रमुख सदस्य थे। इस संविधान सभा ने २ वर्ष, ११ माह, १८ दिन मे कुल १६६ दिन बैठक की। इसकी बैठकों में प्रेस और जनता को भाग लेने की स्वतन्त्रता थी। भारत के संविधान के निर्माण में डॉ भीमराव अंबेदकर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, इसलिए उन्होंने संविधान का निर्माता कहा जाता है।
भारतीय संविधान की प्रकृति
संविधान प्रारूप समिति तथा सर्वोच्च न्यायालय ने इस को संघात्मक संविधान माना है, परन्तु विद्वानों में मतभेद है । अमेरीकी विद्वान इस को छदम-संघात्मक-संविधान कहते हैं, हालांकि पूर्वी संविधानवेत्ता कहते है कि अमेरिकी संविधान ही एकमात्र संघात्मक संविधान नहीं हो सकता । संविधान का संघात्मक होना उसमें निहित संघात्मक लक्षणों पर निर्भर करता है, किन्तु माननीय सर्वोच्च न्यायालय (पि कन्नादासन वाद) ने इसे पूर्ण संघात्मक माना है ।


आधारभूत विशेषताएं

१ शक्ति विभाजन -यह भारतीय संविधान का सर्वाधिक महत्वपूर्ण लक्षण है , राज्य की शक्तियां केंद्रीय तथा राज्य सरकारों मे विभाजित होती है शक्ति विभाजन के चलते द्वेध सत्ता [केन्द्र-राज्य सत्ता ] होती है
दोनों सत्ताएँ एक-दूसरे के अधीन नही होती है, वे संविधान से उत्पन्न तथा नियंत्रित होती है दोनों की सत्ता अपने अपने क्षेत्रो मे पूर्ण होती है
२ संविधान की सर्वोचता - संविधान के उपबंध संघ तथा राज्य सरकारों पर समान रूप से बाध्यकारी होते है [केन्द्र तथा राज्य शक्ति विभाजित करने वाले अनुच्छेद
1 अनुच्छेद 54,55,73,162,241
2 भाग -5 सर्वोच्च न्यायालय उच्च न्यायालय राज्य तथा केन्द्र के मध्य वैधानिक संबंध
3 अनुच्छेद 7 के अंतर्गत कोई भी सूची
4 राज्यो का संसद मे प्रतिनिधित्व
5 संविधान मे संशोधन की शक्ति अनु 368इन सभी अनुच्छेदो मे संसद अकेले संशोधन नही ला सकती है उसे राज्यो की सहमति भी चाहिए
अन्य अनुच्छेद शक्ति विभाजन से सम्बन्धित नही है
3 लिखित सविन्धान अनिवार्य रूप से लिखित रूप मे होगा क्योंकि उसमे शक्ति विभाजन का स्पषट वर्णन आवश्यक है। अतः संघ मे लिखित संविधान अवश्य होगा
4 सविन्धान की कठोरता इसका अर्थ है सविन्धान संशोधन मे राज्य केन्द्र दोनो भाग लेंगे
न्यायालयो की अधिकारिता- इसका अर्थ है कि केन्द्र-राज्य कानून की व्याख्या हेतु एक निष्पक्ष तथा स्वतंत्र सत्ता पर निर्भर करेंगे
विधि द्वारा स्थापित 1.1 न्यायालय ही संघ-राज्य शक्तियो के विभाजन का पर्यवेक्षण करेंगे
1.2 न्यायालय सविन्धान के अंतिम व्याख्याकर्ता होंगे भारत मे यह सत्ता सर्वोच्च न्यायालय के पास है ये पांच शर्ते किसी सविन्धान को संघात्मक बनाने हेतु अनिवार्य है
भारत मे ये पांचों लक्षण सविन्धान मे मौजूद है अत्ः यह संघात्मक है परंतु


भारतीय संविधान मे कुछ विभेदकारी विशेषताए भी है

1 यह संघ राज्यों के परस्पर समझौते से नहीं बना है
2 राज्य अपना पृथक संविधान नही रख सकते है, केवल एक ही संविधान केन्द्र तथा राज्य दोनो पर लागू होता है
3 भारत मे द्वैध नागरिकता नही है। केवल भारतीय नागरिकता है
4 भारतीय संविधान मे आपातकाल लागू करने के उपबन्ध है [352 अनुच्छेद] के लागू होने पर राज्य-केन्द्र शक्ति पृथक्करण समाप्त हो जायेगा तथा वह एकात्मक संविधान बन जायेगा। इस स्थिति मे केन्द्र-राज्यों पर पूर्ण सम्प्रभु हो जाता है
5 राज्यों का नाम, क्षेत्र तथा सीमा केन्द्र कभी भी परिवर्तित कर सकता है [बिना राज्यों की सहमति से] [अनुच्छेद 3] अत: राज्य भारतीय संघ के अनिवार्य घटक नही हैं। केन्द्र संघ को पुर्ननिर्मित कर सकती है
6 संविधान की 7 वीं अनुसूची मे तीन सूचियाँ हैं संघीय, राज्य, तथा समवर्ती। इनके विषयों का वितरण केन्द्र के पक्ष मे है
6.1 संघीय सूची मे सर्वाधिक महत्वपूर्ण विषय हैं
6.2 इस सूची पर केवल संसद का अधिकार है
6.3 राज्य सूची के विषय कम महत्वपूर्ण हैं, 5 विशेष परिस्थितियों मे राज्य सूची पर संसद विधि निर्माण कर सकती है किंतु किसी एक भी परिस्थिति मे राज्य केन्द्र हेतु विधि निर्माण नहीं कर सकते
क1 अनु 249—राज्य सभा यह प्रस्ताव पारित कर दे कि राष्ट्र हित हेतु यह आवश्यक है [2\3 बहुमत से] किंतु यह बन्धन मात्र 1 वर्ष हेतु लागू होता है
क2 अनु 250— राष्ट्र आपातकाल लागू होने पर संसद को राज्य सूची के विषयों पर विधि निर्माण का अधिकार स्वत: मिल जाता है
क3 अनु 252—दो या अधिक राज्यों की विधायिका प्रस्ताव पास कर राज्य सभा को यह अधिकार दे सकती है [केवल संबंधित राज्यों पर]
क4 अनु253--- अंतराष्ट्रीय समझौते के अनुपालन के लिए संसद राज्य सूची विषय पर विधि निर्माण कर सकती है
क5 अनु 356—जब किसी राज्य मे राष्ट्रपति शासन लागू होता है, उस स्थिति मे संसद उस राज्य हेतु विधि निर्माण कर सकती है
7 अनुच्छेद 155 – राज्यपालों की नियुक्ति पूर्णत: केन्द्र की इच्छा से होती है इस प्रकार केन्द्र राज्यों पर नियंत्रण रख सकता है
8 अनु 360 – वित्तीय आपातकाल की दशा मे राज्यों के वित्त पर भी केन्द्र का नियंत्रण हो जाता है। इस दशा मे केन्द्र राज्यों को धन व्यय करने हेतु निर्देश दे सकता है
9 प्रशासनिक निर्देश [अनु 256-257] -केन्द्र राज्यों को राज्यों की संचार व्यवस्था किस प्रकार लागू की जाये, के बारे मे निर्देश दे सकता है, ये निर्देश किसी भी समय दिये जा सकते है, राज्य इनका पालन करने हेतु बाध्य है। यदि राज्य इन निर्देशों का पालन न करे तो राज्य मे संवैधानिक तंत्र असफल होने का अनुमान लगाया जा सकता है
10 अनु 312 मे अखिल भारतीय सेवाओं का प्रावधान है ये सेवक नियुक्ति, प्रशिक्षण, अनुशासनात्मक क्षेत्रों मे पूर्णत: केन्द्र के अधीन है जबकि ये सेवा राज्यों मे देते है राज्य सरकारों का इन पर कोई नियंत्रण नहीं है
11 एकीकृत न्यायपालिका
12 राज्यों की कार्यपालिक शक्तियां संघीय कार्यपालिक शक्तियों पर प्रभावी नही हो सकती है।


संविधान की प्रस्तावना                                                                                    

संविधान के उद्देश्यों को प्रकट करने हेतु प्राय: उनसे पहले एक प्रस्तावना प्रस्तुत की जाती है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना अमेरिकी संविधान से प्रभावित तथा विश्व मे सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। प्रस्तावना के माध्यम से भारतीय संविधान का सार, अपेक्षाएँ, उद्देश्य उसका लक्ष्य तथा दर्शन प्रकट होता है। प्रस्तावना यह घोषणा करती है कि संविधान अपनी शक्ति सीधे जनता से प्राप्त करता है इसी कारण यह ‘हम भारत के लोग’ इस वाक्य से प्रारम्भ होती है। केहर सिंह बनाम भारत संघ के वाद मे कहा गया था कि संविधान सभा भारतीय जनता का सीधा प्रतिनिधित्व नही करती अत: संविधान विधि की विशेष अनुकृपा प्राप्त नही कर सकता, परंतु न्यायालय ने इसे खारिज करते हुए संविधान को सर्वोपरि माना है जिस पर कोई प्रश्न नही उठाया जा सकता है।
संविधान की प्रस्तावना:
" हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को :
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा
उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढाने के लिए
दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई0 (मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, सम्वत् दो हजार छह विक्रमी) को एतद
द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।

Wednesday 21 September 2011

CURRENT AFFAIRS

भारतीय संविधान


भारतसंसदीय प्रणाली की सरकार वाला एक प्रभुसत्तासम्पन्न, समाजवादी धर्मनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य है। यह गणराज्य भारत के संविधान के अनुसार शासित है। भारत का संविधान संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर, 1949 को पारित हुआ तथा 26 जनवरी, 1950 से प्रभावी हुआ। 26 जनवरी का दिन भारत में गणतन्त्र दिवस के रूप में मनाया जाता है।


भारतीय संविधान  का संक्षिप्त परिचय

भारत का संविधान दुनिया का सबसे बडा लिखित संविधान है। इसमें ३९५ अनुच्छेद,तथा १२ अनुसूचियां हैं। परन्तु इसके निर्माण के समय इसमें केवल ८ अनुसूचियां थीं। संविधान में सरकार के संसदीय स्‍वरूप की व्‍यवस्‍था की गई है जिसकी संरचना कुछ अपवादों के अतिरिक्त संघीय है। केन्‍द्रीय कार्यपालिका का सांविधानिक प्रमुख राष्‍ट्रपति है। भारत के संविधान की धारा 79 के अनुसार, केन्‍द्रीय संसद की परिषद् में राष्‍ट्रपति तथा दो सदन है जिन्‍हें राज्‍यों की परिषद् राज्‍यसभा तथा लोगों का सदनलोकसभा के नाम से जाना जाता है। संविधान की धारा 74 (1) में यह व्‍यवस्‍था की गई है कि राष्‍ट्रपति की सहायता करने तथा उसे सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद् होगी जिसका प्रमुख प्रधान मंत्री होगा, राष्‍ट्रपति इस मंत्रिपरिषद् की सलाह के अनुसार अपने कार्यों का निष्‍पादन करेगा। इस प्रकार वास्‍तविक कार्यकारी शक्ति मंत्रिपरिषद् में निहित है जिसका प्रमुख प्रधानमंत्री है जो वर्तमान में मनमोहन सिंह हैं।
मंत्रिपरिषद् सामूहिक रूप से लोगों के सदन (लोक सभा) के प्रति उत्तरदायी है। प्रत्‍येक राज्‍य में एक विधान सभा है। जम्मू कश्मीर, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश में एक ऊपरी सदन है जिसे विधान परिषद् कहा जाता है।राज्‍यपाल राज्‍य का प्रमुख है। प्रत्‍येक राज्‍य का एक राज्‍यपाल होगा तथा राज्‍य की कार्यकारी शक्ति उसमें विहित होगी। मंत्रिपरिषद्, जिसका प्रमुख मुख्‍य मंत्री है, राज्‍यपाल को उसके कार्यकारी कार्यों के निष्‍पादन में सलाह देती है। राज्‍य की मंत्रिपरिषद् सामूहिक रूप से राज्‍य की विधान सभा के प्रति उत्तरदायी है।
संविधान की सातवीं अनुसूची में संसद तथा राज्‍य विधायिकाओं के बीच विधायी शक्तियों का वितरण किया गया है। अवशिष्‍ट शक्तियाँ संसद में विहित हैं। केन्‍द्रीय प्रशासित भू- भागों को संघराज्‍य क्षेत्र कहा जाता है।


अनुसूचियाँ

1. पहली अनुसूची - (अनुच्छेद 1 तथा 4) - राज्य तथा संघ राज्य क्षेत्र का वर्णन ।
2. दूसरी अनुसूची - [अनुच्छेद 59(3), 65(3), 75(6),97, 125,148(3), 158(3),164(5),186 तथा 221] - मुख्य पदाधिकारियों के वेतन-भत्ते भाग-क-राष्ट्रपति और राज्यपाल के वेतन-भत्ते, भाग-ख- लोकसभा तथा विधानसभा के अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष, राज्यसभा तथा विधान परिषद् के सभापति तथा उपसभापति के वेतन-भत्ते,भाग-ग- उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन-भत्ते, भाग-घ- भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षकके वेतन-भत्ते।
3. तीसरी अनुसूची - [अनुच्छेद 75(4),99, 124(6),148(2), 164(3),188 और 219] - व्यवस्थापिका के सदस्य, मंत्री, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, न्यायाधीशों आदि के लिए शपथ लिए जानेवाले प्रतिज्ञान के प्रारूप दिए हैं।
4. चौथी अनुसूची - [अनुच्छेद 4(1),80(2)] - राज्यसभा में स्थानों का आबंटन राज्यों तथा संघ राज्य क्षेत्रों से।
5. पाँचवी अनुसूची - [अनुच्छेद 244(1)] - अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जन-जातियों के प्रशासन और नियंत्रण से संबंधित उपबंध।
6. छठी अनुसूची - [अनुच्छेद 244(2), 275(1)] - असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों के जनजाति क्षेत्रों के प्रशासन के विषय मे उपबंध।
7. सातवीं अनुसूची - [अनुच्छेद 246] - विषयों के वितरण से संबंधित सूची-1 संघ सूची, सूची-2 राज्य सूची, सूची-3 समवर्ती सूची।
8. आठवीं अनुसूची - [अनुच्छेद 344(1), 351] - भाषाएँ - 22 भाषाओं का उल्लेख।
9. नवीं अनुसूची - [अनुच्छेद 31 ख ] - कुछ भुमि सुधार संबंधी अधिनियमों का विधिमान्य करण।
10.दसवीं अनुसूची - [अनुच्छेद 102(2), 191(2)] - दल परिवर्तन संबंधी उपबंध तथा परिवर्तन के आधार पर अ
११ ग्यारवी अनुसूची - पन्चायती राज से सम्बन्धित
१२ बारह्ववी अनुसूची - यह अनुसूची संविधान मे ७४ वे संवेधानिक संशोंधन द्वारा जोडि गई।

इतिहास

द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद जुलाई १९४५ में ब्रिटेन ने भारत संबन्धी अपनी नई नीति की घोषणा की तथा भारत की संविधान सभा के निर्माण के लिए एक कैबिनेट मिशन भारत भेजा जिसमें ३ मंत्री थे। १५ अगस्त, १९४७ को भारत के आज़ाद हो जाने के बाद संविधान सभा की घोषणा हुई और इसने अपना कार्य ९ दिसम्बर १९४६ से आरम्भ कर दिया। संविधान सभा के सदस्य भारत के राज्यों की सभाओं के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा चुने गए थे। जवाहरलाल नेहरू, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि इस सभा के प्रमुख सदस्य थे। इस संविधान सभा ने २ वर्ष, ११ माह, १८ दिन मे कुल १६६ दिन बैठक की। इसकी बैठकों में प्रेस और जनता को भाग लेने की स्वतन्त्रता थी। भारत के संविधान के निर्माण में डॉ भीमराव अंबेदकर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, इसलिए उन्होंने संविधान का निर्माता कहा जाता है।
भारतीय संविधान की प्रकृति
संविधान प्रारूप समिति तथा सर्वोच्च न्यायालय ने इस को संघात्मक संविधान माना है, परन्तु विद्वानों में मतभेद है । अमेरीकी विद्वान इस को छदम-संघात्मक-संविधान कहते हैं, हालांकि पूर्वी संविधानवेत्ता कहते है कि अमेरिकी संविधान ही एकमात्र संघात्मक संविधान नहीं हो सकता । संविधान का संघात्मक होना उसमें निहित संघात्मक लक्षणों पर निर्भर करता है, किन्तु माननीय सर्वोच्च न्यायालय (पि कन्नादासन वाद) ने इसे पूर्ण संघात्मक माना है ।


आधारभूत विशेषताएं

१ शक्ति विभाजन -यह भारतीय संविधान का सर्वाधिक महत्वपूर्ण लक्षण है , राज्य की शक्तियां केंद्रीय तथा राज्य सरकारों मे विभाजित होती है शक्ति विभाजन के चलते द्वेध सत्ता [केन्द्र-राज्य सत्ता ] होती है
दोनों सत्ताएँ एक-दूसरे के अधीन नही होती है, वे संविधान से उत्पन्न तथा नियंत्रित होती है दोनों की सत्ता अपने अपने क्षेत्रो मे पूर्ण होती है
२ संविधान की सर्वोचता - संविधान के उपबंध संघ तथा राज्य सरकारों पर समान रूप से बाध्यकारी होते है [केन्द्र तथा राज्य शक्ति विभाजित करने वाले अनुच्छेद
1 अनुच्छेद 54,55,73,162,241
2 भाग -5 सर्वोच्च न्यायालय उच्च न्यायालय राज्य तथा केन्द्र के मध्य वैधानिक संबंध
3 अनुच्छेद 7 के अंतर्गत कोई भी सूची
4 राज्यो का संसद मे प्रतिनिधित्व
5 संविधान मे संशोधन की शक्ति अनु 368इन सभी अनुच्छेदो मे संसद अकेले संशोधन नही ला सकती है उसे राज्यो की सहमति भी चाहिए
अन्य अनुच्छेद शक्ति विभाजन से सम्बन्धित नही है
3 लिखित सविन्धान अनिवार्य रूप से लिखित रूप मे होगा क्योंकि उसमे शक्ति विभाजन का स्पषट वर्णन आवश्यक है। अतः संघ मे लिखित संविधान अवश्य होगा
4 सविन्धान की कठोरता इसका अर्थ है सविन्धान संशोधन मे राज्य केन्द्र दोनो भाग लेंगे
न्यायालयो की अधिकारिता- इसका अर्थ है कि केन्द्र-राज्य कानून की व्याख्या हेतु एक निष्पक्ष तथा स्वतंत्र सत्ता पर निर्भर करेंगे
विधि द्वारा स्थापित 1.1 न्यायालय ही संघ-राज्य शक्तियो के विभाजन का पर्यवेक्षण करेंगे
1.2 न्यायालय सविन्धान के अंतिम व्याख्याकर्ता होंगे भारत मे यह सत्ता सर्वोच्च न्यायालय के पास है ये पांच शर्ते किसी सविन्धान को संघात्मक बनाने हेतु अनिवार्य है
भारत मे ये पांचों लक्षण सविन्धान मे मौजूद है अत्ः यह संघात्मक है परंतु


भारतीय संविधान मे कुछ विभेदकारी विशेषताए भी है

1 यह संघ राज्यों के परस्पर समझौते से नहीं बना है
2 राज्य अपना पृथक संविधान नही रख सकते है, केवल एक ही संविधान केन्द्र तथा राज्य दोनो पर लागू होता है
3 भारत मे द्वैध नागरिकता नही है। केवल भारतीय नागरिकता है
4 भारतीय संविधान मे आपातकाल लागू करने के उपबन्ध है [352 अनुच्छेद] के लागू होने पर राज्य-केन्द्र शक्ति पृथक्करण समाप्त हो जायेगा तथा वह एकात्मक संविधान बन जायेगा। इस स्थिति मे केन्द्र-राज्यों पर पूर्ण सम्प्रभु हो जाता है
5 राज्यों का नाम, क्षेत्र तथा सीमा केन्द्र कभी भी परिवर्तित कर सकता है [बिना राज्यों की सहमति से] [अनुच्छेद 3] अत: राज्य भारतीय संघ के अनिवार्य घटक नही हैं। केन्द्र संघ को पुर्ननिर्मित कर सकती है
6 संविधान की 7 वीं अनुसूची मे तीन सूचियाँ हैं संघीय, राज्य, तथा समवर्ती। इनके विषयों का वितरण केन्द्र के पक्ष मे है
6.1 संघीय सूची मे सर्वाधिक महत्वपूर्ण विषय हैं
6.2 इस सूची पर केवल संसद का अधिकार है
6.3 राज्य सूची के विषय कम महत्वपूर्ण हैं, 5 विशेष परिस्थितियों मे राज्य सूची पर संसद विधि निर्माण कर सकती है किंतु किसी एक भी परिस्थिति मे राज्य केन्द्र हेतु विधि निर्माण नहीं कर सकते
क1 अनु 249—राज्य सभा यह प्रस्ताव पारित कर दे कि राष्ट्र हित हेतु यह आवश्यक है [2\3 बहुमत से] किंतु यह बन्धन मात्र 1 वर्ष हेतु लागू होता है
क2 अनु 250— राष्ट्र आपातकाल लागू होने पर संसद को राज्य सूची के विषयों पर विधि निर्माण का अधिकार स्वत: मिल जाता है
क3 अनु 252—दो या अधिक राज्यों की विधायिका प्रस्ताव पास कर राज्य सभा को यह अधिकार दे सकती है [केवल संबंधित राज्यों पर]
क4 अनु253--- अंतराष्ट्रीय समझौते के अनुपालन के लिए संसद राज्य सूची विषय पर विधि निर्माण कर सकती है
क5 अनु 356—जब किसी राज्य मे राष्ट्रपति शासन लागू होता है, उस स्थिति मे संसद उस राज्य हेतु विधि निर्माण कर सकती है
7 अनुच्छेद 155 – राज्यपालों की नियुक्ति पूर्णत: केन्द्र की इच्छा से होती है इस प्रकार केन्द्र राज्यों पर नियंत्रण रख सकता है
8 अनु 360 – वित्तीय आपातकाल की दशा मे राज्यों के वित्त पर भी केन्द्र का नियंत्रण हो जाता है। इस दशा मे केन्द्र राज्यों को धन व्यय करने हेतु निर्देश दे सकता है
9 प्रशासनिक निर्देश [अनु 256-257] -केन्द्र राज्यों को राज्यों की संचार व्यवस्था किस प्रकार लागू की जाये, के बारे मे निर्देश दे सकता है, ये निर्देश किसी भी समय दिये जा सकते है, राज्य इनका पालन करने हेतु बाध्य है। यदि राज्य इन निर्देशों का पालन न करे तो राज्य मे संवैधानिक तंत्र असफल होने का अनुमान लगाया जा सकता है
10 अनु 312 मे अखिल भारतीय सेवाओं का प्रावधान है ये सेवक नियुक्ति, प्रशिक्षण, अनुशासनात्मक क्षेत्रों मे पूर्णत: केन्द्र के अधीन है जबकि ये सेवा राज्यों मे देते है राज्य सरकारों का इन पर कोई नियंत्रण नहीं है
11 एकीकृत न्यायपालिका
12 राज्यों की कार्यपालिक शक्तियां संघीय कार्यपालिक शक्तियों पर प्रभावी नही हो सकती है।


संविधान की प्रस्तावना                                                                                    

संविधान के उद्देश्यों को प्रकट करने हेतु प्राय: उनसे पहले एक प्रस्तावना प्रस्तुत की जाती है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना अमेरिकी संविधान से प्रभावित तथा विश्व मे सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। प्रस्तावना के माध्यम से भारतीय संविधान का सार, अपेक्षाएँ, उद्देश्य उसका लक्ष्य तथा दर्शन प्रकट होता है। प्रस्तावना यह घोषणा करती है कि संविधान अपनी शक्ति सीधे जनता से प्राप्त करता है इसी कारण यह ‘हम भारत के लोग’ इस वाक्य से प्रारम्भ होती है। केहर सिंह बनाम भारत संघ के वाद मे कहा गया था कि संविधान सभा भारतीय जनता का सीधा प्रतिनिधित्व नही करती अत: संविधान विधि की विशेष अनुकृपा प्राप्त नही कर सकता, परंतु न्यायालय ने इसे खारिज करते हुए संविधान को सर्वोपरि माना है जिस पर कोई प्रश्न नही उठाया जा सकता है।
संविधान की प्रस्तावना:
" हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को :
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा
उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढाने के लिए
दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई0 (मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, सम्वत् दो हजार छह विक्रमी) को एतद
द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।